सावन में बारिश होना और भोलेनाथ के दर्शन का जितना महत्व हैं उतना ही सावन में नीम या आम के पेड की छाव के निचे झूले का भी, झूला प्रेम व खुलेपन का प्रतिक हैं श्री कृष्ण भी अपनी बांसुरी की धुन में खो जाते और गोपिया उन्हें झूला झुलाती रहती, पुरातन काल में राजा-महाराजा भी सुकून व शांति के लिए झूले की गोद में अपना समय व्यतीत करते थे. झूला सिर्फ एक खेल या आनंद का साधन नहीं ये कही ना कही आपकी झिझक और कई अंदरूनी डरो को भी दूर करता हैं. खैर आज ये उतने चलन में नहीं फिर भी बहुत से घरों में लोग इसे शौख के लिए रखे हुए हैं वैसे आज बाजार में कई तरह के झूले मौजूद हैं अलग-अलग प्रकार रूप रंग व आकार के भी कुछ समय पहले स्कूलों में भी झूले का बड़ा महत्व था पर धीरे धीरे इन कंप्यूटर्स ने इन्हें दूर कर दिया.
There are 0 comments on this post
Please Login to Post Comment !