यदि हम कुछ प्राप्त करना चाहते हैं तो उसका एक ही उपाय है- ‘देने के लिए तैयार होना।’ इस जगत में कोई वस्तु बिना मूल्य नहीं मिलती। हर वस्तु का पूरा-पूरा मूल्य चुकाना पड़ता है। जो देना नहीं चाहता वरन् लेने की योजनाएं ही बनाता रहता है वह सृष्टि के नियमों से अनजान ही कहा जायेगा। यदि समुद्र बादलों को अपना जल देना न चाहे तो उसे नदियों द्वारा अनन्त जल राशि प्राप्त करते रहने की आशा छोड़ देनी पड़ेगी। कमरे की किवाड़ें और खिड़कियाँ बंद करली जायें तो फिर स्वच्छ वायु का प्रवेश वहाँ कैसे हो सकेगा? जो मलत्याग नहीं करना चाहता उसके पेट में तनाव और दर्द बढ़ेगा, नया, सुस्वादु भोजन पाने का तो उसे अवसर ही न मिलेगा। झाडू न लगाई जाय तो घर में कूड़े के ढेर जमा हो जायेंगे। जिस कुंए का पानी खींचा नहीं जाता उसमें सड़न ही पैदा होती है। त्याग के बिना प्राप्ति की कोई सम्भावना नहीं। घोर परिश्रम करने के फलस्वरूप ही विद्यार्थी को विद्या, व्यापारी को धन, उपकारी को यज्ञ और साधक को ब्रह्म की प्राप्ति होती है। कर्त्तव्य पालन करने के बदले में अधिकार मिलता है और निःस्वार्थ प्रेम के बदले में दूसरों का हृदय जीता जाता है। जो लोग केवल पाना ही चाहते हैं देने के लिए तैयार नहीं होते उन्हें मिलता कुछ नहीं, खोना पड़ता है। आनन्द देने में है। जो जितना देता है उससे अनेक गुना पाता है। पाने का एकमात्र उपाय यही है कि हम देने के लिए तैयार हों। जो जितना अधिक दे सकेगा उसे उसके अनेक गुना मिलेगा। इस जगत का यही नियम अनादि काल से बना और चला आ रहा है। जो इसे जान लेते हैं उन्हें परिपूर्ण तृप्ति पाने की साधना सामग्री भी प्राप्त हो जाती है। कृष्ण कुमार धाकड़ प्रवक्ता धाकड़ टुडे पत्रिका अखिल भारतीय धाकड़ युवा संघ नीमच
There are 0 comments on this post
Please Login to Post Comment !