वर्तमान समय में भी अंधविश्वासी की तरह जीवन जी रहे हैं। सुनील नागर - किशनगंज बारां {राजस्थान} मोबाइल नंबर - 9549201143 आज के युग में एक बार फिर से यह सोचने समझने की जरूरत है कि आप हर रिश्ते को नफा नुकसान से जोड़कर नहीं देख सकते। कुछ रिश्ते आपको भावनात्मक भी बनाने पड़ेंगे। क्योंकि यह रिश्ते सही वक्त पर सही मायने में आपके सही काम आते हैं। यदि आप किसी से मतलब का रिश्ता बना रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि दूसरे ने भी मतलब को देख कर ही आपसे दोस्ती का रिश्ता बनाया है या शादी-ब्याह का रिश्ता बनाया है। यही सोच एक दिन शादी होने के बाद एक दूसरे का गला घोट देती है शादी एक ऐसा रिश्ता है जिसमें पति-पत्नी जीवन भर एक दूसरे का साथ देते हैं, चाहे जीवन में परिस्थितियां कैसी भी विपरीत क्यों नहीं आ जाए। आज भी जब किसी स्त्री-पुरुष के विवाह के लिए कुंडली का मिलान किया जाता है तो सबसे पहले देखा जाता है कि वह किस जाति-धर्म से हैं। यहां तक तो ठीक है, यह देखना भी चाहिए क्योंकि अभी-अभी उच्चतम न्यायलय ने भी इस बात का जिक्र किया था कि भाई-बहिन शादी नहीं कर सकते बशर्ते दोनों एक ही माता-पिता से उत्पन्न होने चाहिए। अगर करते हे तो समाज सुधारको को इस पर रोक लगानी चाहिए। इससे कई सारे नुकसान होते हैं जिसे हम रिश्तो में भाई-बहन मानते हैं वह सिर्फ एक ही माता-पिता से उत्पन्न होना चाहिए ना की अन्य लोगों से उत्पन्न संतान। हम मुंह बोले भाई-बहिन हमारे रिश्तों से बने चाचा मामा आदि लोगों से उत्पन्न संतान को हम मान सकते हैं। हमारे देश के सविधान में भी इन बातों का जिक्र किया हुआ हे कि हम आपसी भाईचारे से मिल कर रहे, आपस में एक-दूसरे को भाई बहिन मानें। लेकिन समाज में आज भी अनेक असामाजिक तत्व ऐसे हैं जो अपने फायदे के लिए दूसरो के रिश्तो को भी नहीं होने देते। उनमें भी कहीं ना कहीं ऐसे तर्क देकर उनकी शादी रोक देते हैं। जबकि इसका विज्ञान की दृष्टि से अर्थ है कि माता-पिता से उत्पन्न संतान को दूसरे घर में भेजने पर उनकी अनुवांशिक बीमारियों से है। अगर हम बेटी को स्वस्थ घर में भेजेंगे तो उसकी अनुवांशिक बीमारी पर कुछ हद तक रोक लग सकती है क्योंकि महिला ही बीमारी का वाहक होती है। स्वस्थ महिला स्वस्थ परिवार को जन्म देती हे। महिला के उस परिवार की आगे आने वाली पीढ़ी उस बीमारी से कुछ हद तक निजात पा सकती है, लेकिन लोगों के अंदर इन बातों की समझ ना होकर पुरानी विचारधारा घर बनाए हुए हैं। जो उनके दिमाग से निकलने का नाम नहीं ले रही है। अगर ऐसी स्थिति भविष्य में रही तो आने वाले समय में आधे से ज्यादा युवा कुंवारे रहेगें। और लड़कियों पर भी इसका भयंकर असर पड़ेगा। आजकल कई सारी सामाजिक संस्थाएं है जो इस बात पर जोर दे रही है और अच्छा कार्य भी कर रही है, लेकिन उनके कार्य सिर्फ कागजों और घोषणाओं में ही नजर आते हैं। सामाजिक संस्थाओं से जुड़े लोग भी बाहर सबके सामने तो समाज सुधार जेसी बातें कर लेते हैं, लेकिन खुद भी इसके शिकार है। लोग इन बातों पर ज्यादा ध्यान देने के बजाय दहेज़, नाबालिक विवाह, बच्चों का सुसाइड करना, बाल मजदूरी, बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना आदि विशेष बातों पर ध्यान दें तो ज्यादा अच्छा है। वर्तमान समय में बहुत बदलाव सामने आ रहे हैं। अब पहले जैसा समय नहीं रहा है। अब सभी समाजो में बहुत बदलाव देखने को मिल रहे हैं। जबकि आज भी बहुत से नवयुवक और नवयुवतियां पारंपरिक हिंदू विवाह पद्धति के निहितार्थो और इसके महत्त्व समझना चाहते हैं। आमतौर पर वे इसके बहुत से रीति रिवाजों को पसंद नहीं करते हैं, क्योंकि इनका गठन उस काल में हुआ था जब हमारा सामाजिक ढांचा बहुत अलग किस्म का था। उन दिनों परिवार बड़े ओर सयुक्त हुआ करते थे। वह पुरुष प्रधान समाज था और स्त्रियां सदैव आश्रित वर्ग में ही गिनी जाती थी। आदमी चाहे तो एक से अधिक विवाह कर सकता था परंतु स्त्रियों के लिए तो ऐसा सोचना भी पाप था। विवाह पद्धति के संस्कार अत्यंत प्रतिकात्मक थै, और उनमें कृषि आधारित जीवन प्रणाली के अनेक बिम्ब थे। क्योंकि कृषि अधिकांश भारतीयों की आजीविका का मुख्य साधन था। पुरुष को प्राचीन काल में कृषक और महिला को भूमि कहा जाता था और उससे उत्पन्न होने वाला शिशु उपज की श्रेणी में आता था। हमारे सामने अाज समस्या यह भी है कि हिंदू विवाह का अध्धयन करते समय मानकों का अभाव दिखता हैै। प्रांतीयता और जातीयता के कारण उनमें बहुत-सी विविधताऐं घर कर गई है। लोग आज भी अंधविश्वास में जी रहे हैं। वर्तमान समाज में जितनी समानता पुत्र को दी जाती है उतनी ही समानता वर्तमान समाज में पुत्री को भी दी जाती है। पुत्र से शादी ब्याह के समय उसकी मनःस्थिति पूछी जाती है, इसी प्रकार पुत्री को भी इस बात से वंचित नहीं रखा जाता है। लेकिन लोग समान जाति में तो यह विवाह करते ही है तो गोत्र पर इसका इतना ध्यान क्यों देते हैं। आज का समाज जागरुक समाज है, पढ़ा-लिखा समाज है। जब रिश्ते टूटते हैं तो वही समाज के लोग जो रिश्ते करते समय मना करते हैं, वही बाद में बदनामी भी करते हैं। आप अपनी बुद्धि अपने विवेक से काम कीजिए। आपने अपने बेटे बेटी को 20 साल तक आंखों के सामने रखकर बिना किसी से पूछे उनकी हर एक ख्वाहिश पूरी की है, उनकी परवरिश की है। परवरिश करते समय जब आपने किसी से नहीं पूछा और अब दूसरों की बातें मान कर अपने बच्चों के जीवन को अंधेरे में मत झोंको। आप बिना मनपसंद के लड़के-लड़की का विवाह कर देते हैं, क्या यही आपकी जिम्मेदारी है। क्या आप 20 साल तक उनकी देखभाल करके उनसे अपना चुकता करते हैं। बच्चे वही शादी करें जहां माता पिता चाहते हैं यह बात जब माता पिता सोचते हैं तो वह इस बात पर भी ध्यान दे कि जब उनकी संतान उनकी खुशी के लिए अपना पूरा जीवन दाव पर लगा कर बिना सोचे समझे ही शादी के लिए हां कर देते हैं। जबकि वह उस अनजान शक्स को जानते भी नहीं है। जिससे उनकी शादी होने वाली है। तो यह बात माता-पिता को भी सोचनी चाहिए कि उनकी संतान की खुशी किस में है। अगर यह बात आज वर्तमान समाज में सब सोचने लग जाए तो जो सुसाइड, तलाक जेसी कई अनहोनी घटनाएं या सामाजिक बुराई जो समाज में फैली है उन पर कुछ हद तक रोक लग जाए और जो समाज कंटक हैं, जो एक-दूसरे के रिश्ते बिगाड़ने में लगे हैं और जो दूसरों का जीवन खराब करने में लगे हैं, वह भी सुधर जाए। लोगों ने शादी ब्याह में गोत्र और उच्च नीच जैसी बातों पर बदलाव की ओर ध्यान देना तो शुरु किया है पर इसके साथ-साथ इन बातों का प्रचार प्रसार करना भी बहुत जरुरी है। अगर शादी लड़के लड़की की सहमति और साथ में दोनों परिवारों की सहमति से होती है तो रिश्तों में दरार नहीं आती है और दहेज के मामलेे भी कम सामने आते हैं। अगर शादी बेमेल या बिना इजाजत होती हे तो दहेज की मांग भी बढ़ती है और लड़के लड़की भी एक दूसरे के साथ जीवन निर्वाह अच्छे ढंग से नहीं कर पाते हैं। और लड़का लड़की के परिवार को नहीं समझता है, इसी प्रकार लड़की भी लड़के के परिवार को नहीं समझती है।और ऐसी स्थिति में दोनों शादी के बाद सामूहिक परिवार से अलग रहने लगते हैं। ऐसी कई सारी बातें हैं जो कि गोत्र, मंगल आदि भ्रान्तियों की वजह से सामने आती है। लोग प्रेम विवाह करते हैं तो ना तो उनकी कोई जाति होती और ना कोई धर्म। फिर भी अच्छे से जीवन निर्वाह करते हैं। अच्छे से जीवन जीते हैं। इसी वजह से आज के युग में ज्यादातर युवा लड़के-लड़कियां प्रेम विवाह की और झुकने ज्यादा लगे हैं। अगर इसी प्रेम विवाह पर परिवार वाले भी सहमति दे दें, तो जीवन भर लड़के लड़की के कोई भी परेशानी नहीं आती है। सिर्फ एक गौत्र और मंगल को लेकर बच्चों को ऐसे कदम उठाने पढ़ते हैं कि वह घर से दूर चले जाते हैं। घरवालों के द्वारा की गई 20 साल की परवरिश ऐसे समय में उनके लिए कोई मायने नहीं रखती है। वो सब भूल जाते हैं और प्रेम विवाह कर लेते हैं। जबकि उनको भी पता होता है कि घरवाले इस बात से नाराज होंगे और हमें अपनाएंगे नहीं। फिर भी ऐसा कदम उठाने को तैयार हो जातें हैं। क्योंकि युवावस्था में उनके ऊपर कई सारी जिम्मेदारियां आने लगती है। नौकरी की चिंताएं, शादी की चिंताएं, पढ़ाई की चिंताएं, परिवार की चिंताएं आदि। इस प्रकार कहीं प्रकार से सब सोचने लगते हैं तो वह एक ही फैसला करते हैं कि 20 साल तक तो हमने घरवालों के साथ जीवन जी लिया बाकी 80 साल जो हे हमें एक-दूसरे के संग ही जीवन जीना है। इसलिए वो घरवालों की बात न मानकर भी 20 साल की गई माता पिता की परवरिश को भूलकर भी अपनी मनपसंद से शादी कर लेते हैं। और ऐसे में अकेले जीवन जीने की सोच लेते हैं। हम अगर इन बातों पर जागरुक हो जाए तो यह समस्याएं दूर हो जाएगी नहीं तो आने वाले समय में सरकार ऐसे कितने ही कार्यक्रम चलाए लेकिन लोग प्रेम विवाह पर ज्यादा जोर देने लगेंगे। यह ग्राफ अब वर्तमान समय में बढ़ने लगा है और आने वाले समय में और भी बढ़ेगा।
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